10 दिन की सफल हड़ताल से महाराष्ट्र के आशा कार्यकर्ताओं के संघर्ष को मिली उर्जा

न्यू ट्रेड यूनियन इनिशिएटिव (एनटीयूआई) महामारी के बीच देश की सुरक्षा में खड़े पहली पंक्ति के स्वास्थ्य कर्मचारियों की वेतन वृद्धि और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए चलाए गए सफल आंदोलन के लिए महाराष्ट्र के सभी आशा कर्मचारियों और गट प्रवर्तक कर्मचारी कृति समिति एवं इसमें शामिल एनटीयूआई संबद्ध यूनियन और सभी सदस्यों को मुबारकबाद देता है।

आशा कार्यकर्ता और उनके सुपरवाइजर समुदाय में बिमारी की पहचान करने, उसके फैलाव को रोकने, उससे बचाव के उपाय का प्रसार करने से ले कर टीकाकरण शुरू होने के बाद उसके प्रति जागरूकता फैलाने तक कोविड 19 महामारी के खिलाफ चलाई जा रही सरकार मुहिम के शीर्ष पर रहे हैं। देश भर में, कई आशा कार्यकर्ता और उनके सुपरवाइजर घातक वायरस से प्रभावित हुए हैं और इसकी चपेट में कई लोगों ने अपनी जान भी गंवाई है ।

महामारी का सबसे ज्यादा खामियाजा उठाने वाले इन कर्मचारियों को ना तो सरकार मजदूर का दर्जा देती है ना ही न्यूनतम मजदूरी । सामुदायिक स्वास्थ्य की निगरानी की उनकी जिम्मेदारी की वजह से वे वायरस के संपर्क में सबसे अधिक आए हैं और फिर भी सबसे असुरक्षित रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग ने उनकी सुरक्षा के लिए कोई जिम्मेदारी नहीं ली है ना ही कोविड से मृत्यु होने पर मिलने वाले आर्थिक मुआवजे के लिए आशा कर्मचारियों को हकदार माना है जो सरकार ने कोविड की जद में आने वाले अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं के लिए घोषित किया था।

इन परिस्थितियों में महाराष्ट्र महामारी से सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्यों में से एक रहा। फिर भी सरकार आशा कर्मियों के प्रति उदासीन रही जिनके कंधों पर राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था टिकी है, ऐसे में 70,000से अधिक आशा कार्यकर्ताओं और उनके सुपरवाइजर के पास स्वास्थ्य प्रणाली में उनके योगदान को पहचान दिलाने के लिए अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। राज्य के आशा कार्यकर्ताओं की यूनियनों की संयुक्त कार्रवाई समिति के साथ बातचीत करने के लिए सरकार की प्रारंभिक अनिच्छा के बावजूद, सरकार को अंततः निर्धारित और एकजुट दस दिन के हड़ताल के बाद वेतन वृद्धि की प्रमुख मांगों को स्वीकार करने और कर्मचारियों के साथ समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ा। हड़ताल से पहले आशा कर्मचारियों को रु. 4000 प्रति माह ही मिलते थे।

समझौते के अनुसार, महाराष्ट्र राज्य में आशा कार्यकर्ताओं को 1500 रुपये की मासिक वेतन वृद्धि मिलेगी और 1 जुलाई 2021 से सुपरवाइजर की मासिक ये में 1700 रुपये का इजाफ़ा होगा। वही वेतन वृद्धि अगले साल फिर से लागू होगी। इसके अलावा, आशा कार्यकर्ताओं और उनके सुपरवाइजर दोनों को प्रति माह 500 रुपये का एक निश्चित कोविड भत्ता और टीकाकरण अभियानों के लिए 200 रुपये दैनिक भत्ता भी मिलेगा, साथ ही आशा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया जाएगा और स्वास्थ्य केंद्रों पर ए. एन. एम और जी. एन. एम बनने का अवसर दिया जाएगा।

महाराष्ट्र सरकार ने आशा कार्यकर्ताओं के लिए जिला अस्पतालों में अलग विश्राम स्थल प्रदान करने पर भी सहमति जताई है। आशा कर्मचारी कोविड रोगियों को इलाज के लिए इन जो अस्पतालों में ले कर जाते हैं, इससे उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी। इसके साथ ही सरकार आशा कार्यकर्ताओं और उनके परिवारों को सरकारी अस्पतालों में मुफ्त स्वास्थ्य सेवा देने पर भी सहमत हुई है, साथ ही सरकार आशा कार्यकर्ताओं के लिए 50 लाख रुपये तक की स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू करने के लिए तत्काल उपाय करेगी।

इसके अलावा, सरकार एक समिति गठित करने पर सहमत हुई है जो आशा कार्यकर्ताओं की कामकाजी परिस्थितियों का अध्ययन करेगी। इस कमेटी में संयुक्त कार्रवाई समिति के प्रतिनिधि भी होंगे। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में आशा कार्यकर्ताओं द्वारा किए जाने वाले कार्यों के प्रकार और उनकी महत्ता समझने और पहचानने की दिशा में पहला कदम है।

स्वास्थ्य का विषय हमारे संविधान की समवर्ती सूची का विषय है और इसलिए राज्यों को अक्सर वह जिम्मेदारी लेनी पड़ती है जिससे केंद्र सरकार अपना पल्ला झाड़ लेती है। यह ऐसा ही एक मामला है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है और इस तर्क से आशा कार्यकर्ता और उनके सुपरवाइजर और एएनएम, जीएनएम आदि सभी स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार के निर्देशन में हैं। उनके काम की शर्तें, उनकी जिम्मेदारियां सभी केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाती हैं, लेकिन जब उनकी मजदूरी के लिए संसाधनों के आवंटन और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को सुचारु बनाए रखने में उनके योगदान को मान्यता देने की बात आती है, तो केंद्र जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लेता है । हालांकि, राज्य सरकारों के पास यह विलासिता नहीं है और इसलिए लोगों की सेवा करने वाले श्रमिकों की मांगों को पूरा करने के अलावा राज्य सरकारों के पास कोई विकल्प नहीं है।

महाराष्ट्र राज्य में लगभग 71,867 आशा कार्यकर्ता हैं जिनमें 3,570 सुपरवाइजर शामिल हैं और वेतन में इस वृद्धि से राज्य के खजाने से 202 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च आएगा जो वास्तव में केंद्र सरकार से आना चाहिए।

जब फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम का श्रेय लेने की बात आती है, तो नरेंद्र मोदी सरकार कभी नहीं शर्माती, लेकिन जब उनके लिए भुगतान करने की बात आती है, तो उन्हें केवल दीये जलाने और थाली बजाने को कहा जाता है।

मोदी सरकार बनो जवाबदार!

मोदी सरकार हमारी मजदूरी दो!

फ्रन्टलाइन कर्मियों की लड़ाई हमारी लड़ाई है।

मजदूर एकता जिंदाबाद।

गौतम मोदी
महासचिव