28-अगस्त-लोकतंत्र-बचाओ

लोकतंत्र बचाने को राष्ट्रव्यापी विरोध दिवस में शामिल हों

28 अगस्त 2021

उन पाँचों पर आरोप था कि उन्होंने 31 दिसंबर 2017 – 1 जनवरी 2018 की रात भीमा-कोरेगांव में हुए समारोह में हिस्सा लिया था। गिरफ्तारी से पहले उनसे पूछताछ की गई, उनके घरों की तलाशी ली गई और उनके नियोक्ता को उनके ख़िलाफ़ लगे ‘आरोप’ की सूचना दी गई। उनके नियोक्ता ने उनकी मज़दूरी देना बंद कर दिया और कुछ मामलों में पुलिस उत्पीड़न का हवाला देते हुए उनके मकान मालिकों ने उन्हें और उनके परिवारों को घर से निकाल दिया।

शंकरैय्या गुंडे, सत्यनारायण कर्रेला, रवि मारमपल्ली, सैयदुलु सिंगपंगा और बाबू वांगुड़ी पाँचों रिलायंस एनर्जी लिमिटेड (रिएलि) मुंबई में ठेका मज़दूर थे और अपनी यूनियन – मुंबई इलेक्ट्रिसिटी एम्पलाईज़ यूनियन के सक्रिय कार्यकर्ता थे जिन्हें फ़रवरी 2018 में विधि विरुद्ध क्रिया कलाप (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (यू.ए.पी.ए) के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। दिसंबर, 2018 में इनमें से चार की ज़मानत पर रिहाई हो गई क्योंकि महाराष्ट्र पुलिस 90 दिनों में चार्जशीट दायर नहीं कर सकी जैसा कि कानून के तहत प्रावधान है। सैयदुलु सिंगपंगा को सबूतों के अभाव में मई, 2021 में रिहा किया गया।

इन पाँचों और इनके साथ काम करने वाले ठेका मज़दूरों ने लगभग एक दशक पहले मुंबई इलेक्ट्रिसिटी एम्पलाईज़ यूनियन की नींव रखी ताकि अपने हक की लड़ाई लड़ सकें। इस एक दशक में इन लोगों ने न्यूनतम वेतन हासिल किया, ईएसआई के तहत स्वास्थ्य सुरक्षा पाई, मुंबई के उपनगरों की असुरक्षित बिजली की तारों के कारण आये दिन होने वाले हादसों में मुआवज़े की भी मांग की। ठेका मज़दूरों ने साथ मिल कर यूनियन को खड़ा किया जिससे उन्हें रिलायंस के ख़िलाफ़ खड़े होने की शक्ति और आत्मसम्मान मिला। दिसंबर 2017 में मुंबई इलेक्ट्रिसिटी एम्पलाईज़ यूनियन ने विरोध प्रदर्शन किया ताकि काम के दौरान करंट लगने से मारे गए एक मज़दूर के परिवार को मुआवज़ा मिल सके और उस मज़दूर की पत्नि को उसकी जगह नौकरी मिले। मज़दूरों का सर उठाना मालिकों के गले आख़िर कब उतरा है और यहाँ तो मामला और भी नाज़ुक था, ये वो दौर था जब रिलायंस एनर्जी लिमिटेड की कमान अडानी ट्रांसमिशन लिमिटेड को सौंपी जा रही थी।

जब भीमा-कोरेगांव उस स्थल के रूप में उभरा जिसने इस राष्ट्र का वजूद हिला कर रख दिया, उससे बहुत दिन पहले ही इन पाँचों पर आरोप था कि इन्होंने 31 दिसंबर 2017 – 1 जनवरी 2018 की रात भीमा-कोरेगांव में हुए समारोह में हिस्सा लिया था। गिरफ्तारी से पहले इनसे पूछताछ की गई, इनके घरों की तलाशी ली गई और इनके नियोक्ता को इनके ख़िलाफ़ लगे ‘आरोप’ की सूचना दी गई। इनके नियोक्ता ने इन सब को मज़दूरी देना बंद कर दिया और कुछ मामलों में पुलिस उत्पीड़न का हवाला देते हुए उनके मकान मालिकों ने इन्हें और इनके परिवारों को घर से निकाल दिया।इन पर आरोप था कि ये ‘देशद्रोही’ थे, ‘माओवादी’ और ‘अर्बन-नक्सल’ थे। सच्चाई तो यह है कि ये केवल मज़दूर हैं जो अपने कानूनी अधिकारों के लिए आवाज़ उठाते हैं और पूरे गौरव से ख़ुद को दलित बताते हैं क्योंकि वे दलित हैं।

आज रिलायंस -5 और उनके परिवारों का जीवन बर्बाद हो गया है और मुंबई इलेक्ट्रिसिटी एम्पलाईज़ यूनियन कमज़ोर पड़ गई है क्योंकि उनके साथियों में इस बात का डर है कि आवाज़ उठाने पर ना जाने उन पर मुसीबतों का कौन सा पहाड़ टूट पड़े।

रिलायंस-5 अकेले नहीं हैं, वे भीमा कोरेगांव -16 की सोहबत में हैं, जिसमें स्टैन स्वामी की तो अब बस स्मृति ही शेष रह गई है, उन्हें अत्यंत क्रूरता से मौत के घाट उतारा गया।
यूएपीए, राजद्रोह अधिनियम 1870, और कई अन्य काले कानून जो लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को कमजोर करते हैं और जमानत पाना लगभग असंभव बना देते हैं, उनका इस्तेमाल अलग-अलग सरकारों द्वारा लगातार अपने ख़िलाफ़ उठने वाले विरोध के स्वर को कुचलने के लिए किया जाता रहा है। 2014 से, जब से भाजपा सत्ता में आई है इन कानूनों के उपयोग में इज़ाफा हुआ है और इन कानूनों के तहत गिरफ्तार किए गए लोगों की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है। ट्रेड यूनियनें, जन आंदोलन और लोकतांत्रिक अधिकार कार्यकर्ता जो भाजपा सरकार के ख़िलाफ़ खड़े होने और सच बोलने का साहस रखते हैं, उनके ख़िलाफ़ इन कानूनों का इस्तेमाल भाजपा सरकार का मुख्य अस्त्र बन गया है। यह हमला किसी एक व्यक्ति पर हमला नहीं है। यह उन लोगों पर हमला है जो मजदूर वर्ग के शोषण, भेदभाव और अन्याय के विरोध में खड़े होते हैं और सभी मेहनतकशों, महिलाओं, ऐतिहासिक रूप से शोषित समुदायों और अल्पसंख्यक धर्म में मानने वालों, विशेष रूप से मुसलमानों और खास कर जम्मू-कश्मीर के लोगों पर हमला है।

यह उन सब लोगों पर हमले का मुख्य अस्त्र है जो एक बहुसंख्यक हिंदुत्ववादी भारत के विरोध में खड़े होते हैं।

यह उन लोगों पर वार करने का मुख्य अस्त्र है जो चार लेबर कोड के माध्यम से राष्ट्र में श्रमिकों के अधिकारों के धज्जियाँ उड़ाने के ख़िलाफ़ खड़े हैं और खड़े रहेंगे। यह उन मेहनतकश किसानों पर हमला है जिनकी आजीविका तीन कृषि कानूनों के कारण खत्म हो जाएगी। इन दोनों कानूनों के साथ-साथ भाजपा सरकार के आर्थिक कार्यक्रम जिसका केंद्र निजीकरण की नीति है, अर्थव्यवस्था को निजी हाथों में दे देने की पहल है, जिस बंदरबाँट में अंतरराष्ट्रीय पूंजी भी शामिल है और जिसमें मेहनतकश लोगों को बस बाजार के हाथोंं तबाह होने को छोड़ दिया जाएगा।
इस 28 अगस्त 2021 को जब भीमा-कोरेगांव -16 में से पाँच की गिरफ्तारी को तीन साल पूरे होने जा रहे हैं एन.टी.यू आई राष्ट्र भर के विभिन्न लोगों के साथ मिल कर लोकतंत्र बचाने की लड़ाई में और उस भारत की रक्षा की जंग में खड़ा है जिसके मूल्य एकता, समाजिक न्याय और गणतंत्र हैं।

रिलायंस -5 के साथ खड़े हों
भीमा कोरेगांव – 16 को रिहा करो
यू.ए.पी.ए रद्द करो, राजद्रोह अधिनियम रद्द करो, सभी काले कानूनों को निरस्त करो
विरोध के अधिकार की रक्षा करें
यूनियन बनाने और यूनियन में शामिल होने के अधिकार की रक्षा करें
चारों लेबर कोड वापिस लो
तीनों कृषि कानून रद्द करो
लोकतंत्र बचाओ